चलो फिर आज…

चलो फिर आज तकिये पे सर रखकर सो जाएँ,

चलो फिर आज चद्दर में मुंह ढक कर सो जाएँ,

तो क्या हुआ शहर में कहीं बलात्कार हो गया,

वो अनजान लड़की हमारी बेटी थोड़ी ही थी,

तो क्या हुआ कोई दंगों का शिकार हो गया,

वो गुमनाम लड़का हमारा बेटा थोड़ी ही था,

हमें क्या पड़ी है किसी पचड़े में पड़ने की,

हमें क्या पड़ी है इस दलदल में उतरने की,

हमें तो बस अपने ही घर पे छुपके बैठना है,

आँखों को बंद करके, झूठे ख़्वाबों को देखना है,

चलो फिर आज तकिये पे सर रखकर सो जाएँ,

चलो फिर आज चद्दर में मुंह ढक कर सो जाएँ!

तो क्या हुआ कोई किसान खुदखुशी कर गया,

वो ग़रीब किसान मेरा नाना थोड़ी लगता है,

तो क्या हुआ कोई फ़ौजी सरहद पर मर गया,

वो जवान कोई मेरा मामा थोड़ी लगता है,

हमें क्या पड़ी है किसी पचड़े में पड़ने की,

हमें क्या पड़ी है इस दलदल में उतरने की,

हमें तो बस अपनी ही जाति में वोट देना है,

और उस वोट के बदले में, नेता से नोट लेना है,

चलो फिर आज तकिये पे सर रखकर सो जाएँ,

चलो फिर आज चद्दर में मुंह ढक कर सो जाएँ!

तो क्या हुआ देश में कोई घोटाला हो गया,

और महँगाई से जेब का दीवाला हो गया,

रुपया डॉलर से अगर डर जाए तो भी क्या,

रोज़ ईंधन का दाम बढ़ जाए तो भी क्या,

हमें क्या पड़ी है किसी पचड़े में पड़ने की,

हमें क्या पड़ी है इस दलदल में उतरने की,

हमारा बच्चा तो डॉक्टर या इंजीनियर ही बनता है,

भगतसिंह तो बस पड़ोसी के घर ही जमता है,

चलो फिर आज तकिये पे सर रखकर सो जाएँ,

चलो फिर आज चद्दर में मुंह ढक कर सो जाएँ!

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