डर के आगे जीत है!

हम बच्चों को गर्मियों की छुट्टियां बहुत पसंद होती हैं। कुछ बच्चे छुट्टियों पर हिलस्टेशन घूमने जाते हैं तो कुछ बच्चे अपने नाना नानी के घर रहने जाते हैं। ऐसे ही एक दिन मेरे पड़ोस में एक लड़की अपने नाना नानी के घर रहने आई थी, जिसका नाम सिद्धि था।

वह मेरी हमउम्र थी। वह खेलकूद में बहुत रुचि रखती थी। जैसा उसका नाम था, वैसी ही वह थी। वह अपना कार्य बहुत मेहनत से सिद्ध करती थी। कुछ ही समय में हम दोनो में घनिष्ठ मित्रता हो गयी।

एक दिन मैंने उसको अपने घर रहने के लिए बुला लिया। वैसे तो मैं काफी दिलेर हूँ लेकिन मुझे रात में भूतों से बहुत डर लगता है। उस रात मम्मी ने मुझे ऊपर की अलमारी से कुछ सामान लाने को कहा तो मैं डर के मारे नहीं जाने के बहाने बनाने लगा। परंतु सिद्धि ने आव देखा न ताव, वो तुरंत ऊपर से अकेले सामान भी ले आयी और नहा धोकर तैयार भी हो कर आ गई। यह देखकर मैं आश्चर्यचकित हो गया।

अगले दिन सिद्धि ने मुझे अंधेरे से ना डरने के लिये काफी समझाया और फिर से मुझे अंधेरे में ऊपर जाने को कहा, परंतु मैं नहीं गया। वह मुझसे रूठके खुद ही अकेली ऊपर चली गई। फिर अचानक मुझे उसके चिल्लाने की आवाज आई, “बचाओ बचाओ!”

पहले तो मैं डर गया। फिर मुझे लगा कि मुझे अपने दोस्त की सहायता करनी चाहिए तो मैं तुरंत दौड़ के ऊपर गया। लेकिन जैसे मैं ऊपर पहुंचा तो हक्का-बक्का रह गया। सिद्धि चिल्लाने की जगह जोर जोर से हंस रही थी और उसने कहा, “देखा तुम खुद ही अकेले ऊपर आ गए ना? अब तो तुम मान गए कि भूत भूत कुछ नहीं होते!”

उस दिन के बाद मैंने भूत प्रेतों पे विश्वास करना बंद कर दिया। और सिद्धि की ही वजह से मुझे अंधेरे से डर लगना भी बंद हो गया।

+++++++++++

Story written by my 8 yr old son Vihaan

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *